गुस्सा (ANGER)
जीवन में प्राय रोज ही कई तरह की घटनाएं घटित होती है, जिनसे कुछ के कारण खुशी तथा कुछ के कारण खेद, क्रोध, घृणा, कुंठा अथवा निराशा जैसे भाव उत्पन्न होते है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कई व्यक्तियों के नित्य संपर्क में आना पड़ता है, इनसे कुछ व्यक्तियों का व्यवहार मन के अनुकूल होता है। और कुछ का प्रतिकूल इनकी प्रतिक्रिया का केंद्र हमारा दिमाग होता है।
आखिरकार क्यों आता है गुस्सा-
दिमाग चूकि सारे शरीर का नियंत्रणकर्ता और संचालक है। अतः इन होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। इन सब के कारण मानसिक तनाव या दबाब के कारण न केबल भोजन देर से पचता है, बल्कि इससे पेट की अन्य समस्याएं भी उत्पन्न होती है, अल्सर और व्यक्ति में वृद्धावस्था के लक्षण तथा अन्य कई रोग उत्पन्न होने की संभावना रहती है। हमारे शरीर पर मनोविकारों के ऐसे कितने ही दुष्प्रभाव पड़ते है और उन सभी मनोविकारो में क्रोध (गुस्सा) सबसे अधिक व विषैला तथा तुरंत प्रभाव डालने वाला मनोविकार होता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डा. कैनन ने शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने पर निष्कर्ष निकाला की पाचन क्रिया और अतःस्राव पर इन सब का बहुत प्रभाव पड़ता है। पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने लगती है। जब सब कुछ ठीक चलता है तो पाचन क्रिया भी ठीक चलती है। क्रोध (गुस्से) के कारण उत्पन्न होने वाली विषैली शर्करा पाचन शक्ति के लिए सबसे खतरनाक है। यह खून को विकृत करके शरीर में पीलापन,नसों में तनाव, पेट दर्द आदि कई समस्याएँ उत्पन्न करता है। इतना ही नहीं क्रोध में माँ के द्वारा बच्चे को दूध पिलाने पर बच्चे के पेट में मरोड़े होने लगती है और हमेशा चिड़चिड़ी रहने वाली माँ का दूध कभी कभी इतना विषैला हो जाता है की बच्चे में कई रोग तक हो जाते है।
गुस्से से शारीरिक शक्ति में कमी आती है तो मानसिक शक्ति में भी कमी आती है। अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. जे. एस्टर ने गुस्से के कारण होने वाले मानसिक शक्ति के कमी के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाला कि "पंद्रह मिनट तक गुस्से में रहने से मनुष्य की जितनी शक्ति नष्ट होती है, उससे यह साधारण अवस्था में नौ घंटे की कड़ी मेहनत क्र सकता है। शरीर की शक्ति में कमी करने के साथ गुस्सा शरीर व चेहरे पर भी अपना प्रभाव छोड़ते है। गुस्सा स्वास्थ्य व सुंदरता को भी नष्ट क्र देता है।
गुस्से सम्बन्ध में अब तक किये गए अध्ययनों के निष्कर्ष पर यह पाया गया है की एक स्वस्थ शांत व्यक्ति की तुलना में कमजोर, दुर्बल और तनावग्रस्त व्यक्ति ज्यादा गुस्से वाले होते है कहावत है की "काम कुब्बत और गुस्सा ज्यादा " इससे बड़ी बात यह है की गुस्से में दुःख या हानि के कारण नष्ट क्र देने की या क्षतिग्रस्त क्र देने की भावना इतनी तेजी से आती है की व्यक्ति अपनी भूल या दोष के ओर तो ध्यान ही नहीं देता तथा अपनी गलती स्वीकार भी नहीं करता है तथा जो वह करने जा रहा है उसके परिणाम पर भी विचार नहीं करता है ऐसी स्थिति में कई बार पहले हो गयी हानि के साथ गुस्से में किये गए कार्य से और इसमें लिए गए निर्णय से और बड़ा नुक्सान उठाना पड़ता है।
गुस्से के दुष्परिणाम-
गुस्सा मन को अशांत व उत्तेजित करता है इससे शरीर में भी तनाव आता है, खून का संचालन बढ़ जाता है, शरीर में गर्मी आ जाती है, सोचने समझने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है। व्यक्ति का चेहरा तमतमा उठता है। ह्रदय की धड़कने तेज हो जाती है। पाचन क्रिया भी कम हो जाती है। एड्रिनल ग्रंथियों से गुस्से की स्थिति में जो हार्मोन्स निकलते है वह खून के साथ मिलकर जिगर में पहुंच जाते है और वहां ग्लाइकोजन को शर्करा में बदल देते है। यह अतिरिक्त शर्करा शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालती है। गुस्सा करने वाले व्यक्ति को स्वयं को ही नुकसान पहुंचता है। इसके लगातार रहने से उच्च रक्त चाप (बीपी) ह्रदयरोग तथा पाचन सम्बन्धी रोगो का खतरा बढ़ जाता है।
गुस्सा करने के प्रमुख कारण-
गुस्सा करने के अधिकतर कारण तो सामान्य व छोटे छोटे ही होते है। यह अविवेकी और अहंकार के कारण होता है। गुस्सा का प्रमुख कारण यह भी होता है की प्रायः व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक की कामना करता है। इसकी पूर्ती होने पर गुस्सा होना अथवा अपने उद्देश्य में असफल होने पर क्रोधित होना, कुंठा अथवा निराशा से ग्रसित हो जाता है। क्रोध से इंसान की सत्य असत्य की तथा सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है और लड़ाई झगड़ा, कटुता व मार पीट के रूप में इसकी अभिव्यक्ति होती है इसके कारण इंसान मित्रों - परिचितों की सहानुभूति को खो देता है। उसे निंदा व तिरस्कार भी सहना पड़ता है। छोटी छोटी बात पर लड़ने झगड़ने और गुस्सा करने वाले व्यक्ति से हर कोई बात करने से तथा सम्बन्ध रखने से बचने लगता है। ऐसे व्यक्ति के साथ कोई साथ खड़ा नहीं होना चाहता है, ठीक वैसी ही हालत हो जाती है जैसे सूखे पेड़ को छोड़कर पक्षी भी चले जाते है।
कैसे करे अपने गुस्से पर काबू-
इस तरह की समस्याओं के उत्पन्न होने पर मनोवैज्ञानिक समाधान सुझाते हुए अमेरिका के प्रसिद्ध मनोरोग चिकित्सक डॉ. बिनसेड पील ने लिखी पुस्तक "लाइफ टैंशन एंड रिलेक्स" इस पुस्तक में सिद्धांत रूप में तीन उपाय बताये गए है -गुस्सा आये तो किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम में अपने आप को लगा दे। किसी काम का विपरीत परिणाम निकले तो इस पर चिंतन मनन करना चाहिए तथा किसी भी प्रकार के मनोरंजन में व्यस्त हो जाना चाहिए। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम व ध्यान ( मैडिटेशन) को अनिवार्य बनाना चाहिए।
गुस्सा सदैव जल्दबाजी का परिणाम होता है ध्यान रखें पहले विचार क्रम में अधिकतर कारण खोजने में गलती हो जाती है अतः गुस्सा आने पर घटना स्थल से इधर उधर हो जाये किसी बगीचे में या बाहर टहलने चले जाए, किसी प्रिय जन से बात चीत करें कुछ न हो सके तो एक गिलास ठंडा पानी पिये और गुस्से को शांत करे। साथ ही जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाए, संयम रखें।
अतः व्यक्ति को गुस्सा, घृणा, कुंठा, व निराशा को दूर करके जीवन को शांत भाव से जीना चाहिए तथा लंबे समय तक मनोविकार की समस्या रहने पर व्यक्ति को विशेषज्ञ मनोचिकित्सक को दिखाकर परामर्शानुसार इलाज कराना भी उचित रहता है।